प्रदोष व्रत का महत्त्व

हिन्दू समाज के अनुसार कई व्रत और उनके करने का महत्त्व और मान्यताएं अलग अलग होती है, हर एक व्रत की अपनी व्रत एवं पूजन विधि होती है।जिसका पालन उन्ही के नियमो अनुसार किया जाता है। हिन्दू धर्म में धार्मिक नियमों का उल्लंघन करना पाप के समान है।
प्रदोष व्रत में भगवान शिव की आराधना की जाती है ,यह व्रत भोलेनाथ को प्रसन्न करने तथा शिव की कृपा पाने के लिए किया जाता है तथा यह व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पे अति प्रसन्न होकर निर्त्य करते है, इस दिन भगवान शिव की पूजा , अर्चना करने से सभी पापो से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष प्राप्त होता है|

पूजा का शुभ समय

प्रदोष व्रत की पूजा शाम को 4:30 बजे से 7:00 बजे के बीच करनी चाहिए क्योकि यह समय भगवान शिव के आह्वान के लिए शुभ माना जाता है|

प्रदोष व्रत की महिमा

शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान फल की प्राप्ति होती है, वैदिक शास्त्र के अनुसार एक दिन जब चारों और अधर्म,पाप और अहिंसा की स्थिति बन जाएगी तथा मानव अपने स्वार्थ भाव के कारण दुष्कर्म करने लगेगा तब उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, भोलेनाथ की आराधना करेगा, उस पर शिवशम्भू की कृ्पा होगी. मोक्ष मार्ग का द्वार खुलेगा तथा उतम लोक की प्राप्ति होगी.|
प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला है। स्त्री अथवा पुरूष जो भी अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है|


  • रविवार को प्रदोष व्रत - रविवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से आपकी आयु में वृद्धि होगी और उत्तम स्वास्थ्य रहेगा
  • सोमवार को प्रदोष व्रत - सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी मनोकामनाएं पूरी होंगी एवं आपकी इक्छा के स्वरुप फल की प्राप्ति होगी।
  • मंगलवार को प्रदोष व्रत - मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से आपको रोगों से मुक्ति मिलेगी तथा आप निरोगी रहेंगे।
  • बुधवार को प्रदोष व्रत - बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।
  • गुरुवार को प्रदोष व्रत - बृहस्पतिवार के व्रत से आपके शत्रु का नाश होता है।
  • शुक्रवार को प्रदोष व्रत - शुक्र प्रदोष व्रत से सभाग्य की वृद्धि होती है, तथा रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है।
  • शनिवार को प्रदोष व्रत - शनि प्रदोष व्रत से संतान प्राप्त होता है मुख्यतः पुत्र की प्राप्ति होती है।
  • प्रदोष व्रत कथा

    प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने हेतु संध्या के समय जाती है।एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी के तट पर एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जिसकी वास्तविकत विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त के रूप में थी। उसके पिता का देहांत युद्ध के दौरान हो गया था तथा माता को भी अकाल मृत्यु प्राप्त हुई थी उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ब्राह्मणी उस बालक को अपने घर ले आई तथा अपने पुत्र के साथ ही उसका लालन पालन भी किया।
    कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को ञात कराया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। अपनी माता के साथ साथ दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
    एक दिन दोनों बालक को वन में भ्रमण करते हुए कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। तत्पश्चात राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। तथा बात करते करते दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। भेंट करने के दौरान गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः विजय प्राप्त की। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्ंोत तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

    प्रदोष व्रत की विधि

    मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करके, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है,पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है। पूजन स्थल को गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है। अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है। पूजन की सभी सामग्रियों को एकत्रित करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके कोशा या जूट की आसन पर बैठकर ईश्वर भोलेनाथ का पूजन प्रारंभ करनी चाहिए।पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए पुरे विधि विधान से पूजा करे। तथा होम धूप और आरती के साथ पूजा संपन्न करे और अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु प्रभु शम्भू से आग्रह करे।

    भव्य आरती

    ॐ जय शिव ओंकारा जय शिव ओंकारा
    ब्रह्म विष्णु सदां शिव अर्द्धांगी धारा || ॐ हर हर महादेव ||
    एकानन चतुरानन पंचानन राजै,
    हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजै || ॐ हर हर महादेव ||
    दो भुज चारू चतुर्भुज दश भुजते सोहे,
    तीनो रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे || ॐ हर हर महादेव ||
    अक्षयमाला बन माला रुंड माला धारी,
    त्रिपुरारी असुरारी शाशिमाला धारी || ॐ हर हर महादेव ||
    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ,
    सनकादिक गरुडादिक भूतादिक संगे || ॐ हर हर महादेव ||
    कर के मध्य कमंडल चक्रत्रिशुल धरता,
    सुखकर्ता दुखहर्ता जग-पालन करता || ॐ हर हर महादेव ||
    ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ,
    प्राणावकशर में शोभित तीनो एका || ॐ हर हर महादेव ||
    त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावे ,
    कहत शिवानन्द स्वामी मन वांछित फल पावे || ॐ हर हर महादेव ||