शनि द्वारा जनित विष योग



शनि द्वारा जनित विष योग

•• जैसे जब रविवार के दिन चतुर्थी तिथि पड़े तब इस योग का निर्माण होता है।
सोमवार का दिन हो और षष्टी तिथि पड़े तब यह अशुभ योग बनता है। मंगलवार का दिन हो और तिथि हो सप्तमी, इस बार और तिथि के संयोग से भी विष योग बनता है।
द्वितीया तिथि जब बुधवार के दिन पड़े तब विष योग का निर्माण होता है। अष्टमी तिथि हो और दिन हो गुरूवार का तो इस संयोग का फल विष योग होता है। शुक्रवार के दिन जब कभी नवमी तिथि पड़ जाती है ।
तब भी विष योग बनाता है।
शनिवार के दिन जब सप्तमी तिथि हो तब आपको कोई शुभ काम करने की इज़ाजत नहीं दी जाती है।
क्योंकि यह अशुभ विष योग का निर्माण करती है।
•• विषयोग में शनि चन्द्र की युति का फल ••

•• जिनकी कुण्डली में शनि और चन्द्र की युति प्रथम भाव में होती है वह व्यक्ति विषयोग के प्रभाव से अक्सर बीमार रहता है। व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में भी परेशानी आती रहती है। ये शंकालु और वहमी प्रकृति के होते हैं।
जिस व्यक्ति की कुण्डली में द्वितीय भाव में यह योग बनता है पैतृक सम्पत्ति से सुख नहीं मिलता है।
कुटुम्बजनों के साथ इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते.गले के ऊपरी भागों में इन्हें परेशानी होती है।
नौकरी एवं कारोबार में रूकावट और बाधाओं का सामना करना होता है।
तृतीय स्थान में विषयोग सहोदरो के लिए अशुभ होता है।इन्हें श्वास सम्बन्धी तकलीफ का सामना करना होता है।
चतुर्थ भाव का विषयोग माता के लिए कष्टकारी होता है।

•• अगर यह योग किसी स्त्री की कुण्डली में हो तो स्तन सम्बन्धी रोग होने की संभावना रहती है।
जहरीले कीड़े मकोड़ों का भय रहता है।
एवं गृह सुख में कमी आती है.पंचम भाव में यह संतान के लिए पीड़ादायक होता है।
शिक्षा पर भी इस योग का विपरीत असर होता है।
षष्टम भाव में यह योग मातृ पक्ष से असहयोग का संकेत होता है।
चोरी एवं गुप्त शत्रुओं का भय भी इस भाव में रहता है।
सप्तम स्थान कुण्डली में विवाह एवं दाम्पत्य जीवन का घर होता है।
इस भाव मे विषयोग दाम्पत्य जीवन में उलझन और परेशानी खड़ा कर देता है।
पति पत्नी में से कोई एक अधिकांशत: बीमार रहता है.ससुराल पक्ष से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते.साझेदारी में व्यवसाय एवं कारोबार नुकसान देता है।
अष्टम भाव में चन्द्र और शनि की युति मृत्यु के समय कष्ट का सकेत माना जाता है.इस भाव में विषयोग होने पर दुर्घटना की संभावना बनी रहती है।
नवम भाव का विषयोग त्वचा सम्बन्धी रोग देता है।
यह भाग्य में अवरोधक और कार्यों में असफलता दिलाता है।

•• दशम भाव में यह पिता के पक्ष से अनुकूल नहीं होता.सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद करवाता है।
नौकरी में परेशानी और अधिकारियों का भय रहता है.एकादश भाव में अंतिम समय कष्टमय रहता है।
और संतान से सुख नहीं मिलता है।
कामयाबी और सच्चे दोस्त से व्यक्ति वंचित रहता है।
द्वादश भाव में यह निराशा, बुरी आदतों का शिकार और विलासी एवं कामी बनाता है.इस प्रकार ये ख़राब योगो में गिना जाता है।
जब भी जातक इस विष योग की संज्ञा से कष्ट उठा रहा हे
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